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दलहनी फसलों

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

किसान भाई खेत में उचित नमी देखकर ही तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई शुरू करें

नई दिल्ली। बारिश में देरी के चलते और प्रतिकूल मौसम के कारण तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई में भारी गिरावट के आसार बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सोयाबीन, अरहर और मूंग की फसल की बुवाई में रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है। 

खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई इस साल काफी पिछड़ रही है। तिलहन की फसलों में मुख्यतः सोयाबीन की बुवाई में पिछले साल के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर 77.74 फीसदी कमी आ सकती है। 

वहीं अरहर की बुवाई में 54.87 फीसदी और मूंग की फसल बुवाई में 34.08 फीसदी की कमी आने की संभावना है। उधर बुवाई पिछड़ने के कारण कपास की फसल की बुवाई में भी 47.72 फीसदी की कमी आ सकती है। हालांकि अभी भी किसान बारिश के बाद अच्छे माहौल का इंतजार कर रहे हैं।

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तिलहन के फसलों के लिए संजीवनी है बारिश

- इन दिनों तिलहन की फसलों के लिए बारिश संजीवनी के समान है। जून के अंत तक 80 मिमी बारिश वाले क्षेत्र में सोयाबीन और कपास की बुवाई शुरू हो सकती है। जबकि दलहन की बुवाई में अभी एक सप्ताह का समय शेष है।

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दलहनी फसलों के लिए पर्याप्त नमी की जरूरत

- कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि दलहनी फसलों की बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखना आवश्यक है। नमी कम पड़ने पर किसानों को दुबारा बुवाई करनी पड़ सकती है। दुबारा बुवाई वाली फसलों से ज्यादा बेहतर उत्पादन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसीलिए किसान भाई पर्याप्त नमी देखकर की बुवाई करें। ----- लोकेन्द्र नरवार

दलहनी फसलों में लगने वाले रोग—निदान

दलहनी फसलों में लगने वाले रोग—निदान

दलहनी फसलें बड़ी नाजुक होती हैं। इनमें जरा सा रोग संक्रमण फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसका दूसरा कारण यह भी है क्योंकि दलहनी फसलों में खर्चा कम आता है इस लिहाज से किसान अन्य फसलों की तरह चौकन्ना रह कर नियंत्रण नहीं करते। 

मसलन धान जैसी फसलों में हर समय निगरानी करनी होती है जबकि दलहन में ऐसा नहीं होता। इस तरह की छोटी छोटी चीजें ही फसल को नुकसान पहुंचा देती हैं।

अरहर की फसल को उकठा, अंगमारी झुलसा एवं अल्टरनेरिया झुलसा प्रभावित करते हैं। बचाव के लिए रोग रोधी किस्मों का चयन करें।

उकठा रोग रोधी किस्मों में बीडीएन 2, एनपीडब्ल्यू, शारदा, सी 11, आर 15, बीएसएमआर 726, 736, 853, टीटी 7, आशा, मारुति, आईपीए 203,206, पीटी 012, नरेन्द्र अरहर 1, अमर, आजाद,  मालवीय अरहर प्रमुख हैं। 

अंगमारी या बांझ रोग रोधी किस्मों में बीएसएमआर 726, 736, 853,आशा, बहार, एचवाई 3 सी, शरद, पूसा 9, अमर, आजाद, मालवीय। 

आल्टरनेरिया ब्लाइट रोग रोधी किस्में में शरद एवं पूसा 9 आदि किस्में हैं। 

चना में उकठा रोग देश के काफी बड़े हिस्से में लगता है। यह फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम के कारण लगता है। इसके अलावा जड़ गलन, धूसर रोग, तना गलन एवं एस्कोकाइटा झुलसा रोग प्रमुख रूप से लगते हैं। 

बचाव:— कई फफूंद जनित रोगों का कारण बीज को उपचारित करके न बोना होता है। बीज को किसी भी प्रचलित फफूंद नाशक दवा की दो से ढ़ाई ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से आवश्यक रूप से उपचारित करना चा​हिए। 

रोग रोधी किस्में:— ​ज्यादातर रोगों के नियंत्रण के लिए जरूरत इस बात की होती है कि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार रोग रोधी किस्में ही सरकारी संस्थानों से लें। यदि प्राईवेट कंपनी का बीज ले रहे हैं तो वहां बीज के विषय में इस तरह की जानकारी नहीं मिलती कि बीज रोग रोधी है या नहीं। यदि इस श्रेणी का बीज बाजार में मिलता है तो पक्के बिल के साथ भरोसेमंद दुकान से लेंं। 

चने की डीसीपी 92—3, जीएनजी 1581, पूसा 362, पूसा 372, पूसा चमत्कार, राजस, एच 82—2, आरएसजी 963, 888, जीएनजी 469, 663, के डब्ल्यूआर 108, जेजी 74, केजीडी 1168, पूसा 372, 1003, विशाल, बीजीडी, जेजी 11, श्वेता,  जीसीपी 105 आदि अनेक किस्में उकठा रोग प्रतिरोधी हैं। किसानों को अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त किसी किस्म का चयन करना चाहिए। 

मूंग एवं उड़द में पर्ण बुंदकी, चूर्णिल असिता, पीला चितेरी रोग प्रमुख रूप से लगते हैं। इन्हें रोकने के भी तरीके बीज उपचार, भूमि उपचार, प्रतिरोधी किस्मों के बीजों का खेती में उपयोग करके इन समस्याओं से काफी हद तक निजात मिल सकती है। 

निदान:— मूंग के पीला चिरेती रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्म एमयूएम 2, नरेन्द्र मूंग 1,पूसा विशाल ग्रीष्मकालीन, पंत मूंग 6, एचयूएम 1, पंत मूंग 6, केएम 2241, श्वेता, पूसा 105, एचयूएम 12 की बिजाई करेंं। इसके अलावा भी कई नई किस्में सरकारी संस्थानों ने विकसित की हैं। पूरी जानकारी करके ही रोग रोधी किस्मों का अपने क्षेत्र के लिए चयन करें।

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की केयू 300, केयूजी 479, नरेन्द्र उड़द 1, पंत यू 19, केयू 92—1 बसन्तकालीन, टीयू 40 रबी, वीबीजी 8, पंत यू 30 प्रमुख किस्में हैं। पाउड्री मिल्ड्यू रोग रोधी मूंग की पूसा 105, एडीटी 3, बीएम 4, टार्म 2, 18, पूसा 9072 आदि। उक्त रोग रोधी उड़द की एलबीजी  17, 20, एडीटी 4, एकेयू 4, आईपीयू 2, टीयू 40 आदि किस्मों को चुनें। 

मटर में चूर्णिल असिता एवं रतुआ रोग का प्रभाव होता है। बचाव के​ लिए अच्छी रोग रोधी किस्मों का चयन करेंं। चूर्णिल असिता रोग रोधी मटर की लम्बी किस्मों में पंत 5, शिखा, अलंकार,  पंत पी 42, मालवीय मटर 2, वीएल 42, गोमती आदि कई किस्में हैं। 

बौनी किस्मों में अपर्णा, एचएफपी 29, 9907, पूसा पन्ना, पंत पी 74, उत्तरा, पूसा प्रभात, मालवीय मटर 15, सपना आदि कस्में लगाएं। रतुआ रोग रोधी मालवीय मटर 15, आईपीएफडी 1—10 किस्म लगाएं। मसूर में रतुआ, उकठा, तना गलन, मूल विगलन जैसे रोग लगते हैं। 

रतुआ रोग से बचाव के लिए पंत एल 4, डीपीएल 62, 15, आईपीएल 406, केएलएस 218, लेंस 4036 किस्म लगाएं।

मसूर की उकठा रोग रोधी पंत एल 4, डीपीएल 15, पतं एल 406, नरेन्द्र मसूर 1, जेएल 3, आईपीएल 81 आदि किस्में सरकारी सं​स्थान से लेकर लगाएं।

MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना लक्ष्य

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने
मूंग, अरहर और उड़द की उपज की समर्थन मूल्य पर खरीद करने की घोषणा की है। खरीद प्रक्रिया क्या होगी, किस दिन से खरीद चालू होगी, किसान को इसके लिए क्या करना होगा, सभी सवालों के जानिए जवाब मेरीखेती पर। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में कृषकों के मध्य फसल विविधता (Crop Diversification) को बढ़ाना देने के लिए यह फैसला किया है। इसके तहत छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में बदलाव किया है।

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अधिक मूल्य दिया जाएगा -

सरकार के निर्णय के अनुसार अब दलहन पैदा करने वाले किसानों को दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक दिया जाएगा। ऐसा करने से प्रदेश में अधिक से अधिक किसान दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे।

दलहनी फसलों को प्रोत्साहन -

छत्तीसगढ़ प्रदेश राज्य सरकार ने छग में दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मूंग, अरहर, उड़द की उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की है।

फसल विविधीकरण (Crop Diversification) -

मूंग, अरहर, उड़द जैसी पारंपरिक दलहनी फसलों को समर्थन मूल्य प्रदान करने का राज्य सरकार का मकसद फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना भी है।

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फसल विविधीकरण के लिए राज्य सरकार ने मूंग, उड़द और अरहर को एमएसपी की दरों पर खरीदने की घोषणा की है।

इतनी मंडियों में खरीद -

ताजा सरकारी निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश की 25 मंडियों में अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर दाल की खरीदारी की जाएगी। मंडिंयों का चयन करते समय इस बात का ख्याल रखा गया है कि, अधिक से अधिक किसान प्रदेश सरकार की योजना से लाभान्वित हों। मंडियां नजदीक होने से दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को मौके पर लाभ मिलेगा और उनकी कमाई बढ़ेगी।

खरीफ खरीद वर्ष 2022-23 -

राज्य सरकार के फैसले के तहत अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में मौजूदा खरीफ फसल (Kharif Crops) खरीद वर्ष 2022-23 में अरहर, मूंग और उड़द की खरीद एमएसपी पर की जाएगी। सरकारी सोसायटी को हरा मूंग बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 7755 रुपए मिलेंगे। राज्य सरकार द्वारा संचालित नोडल एजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विवणन संघ (मार्कफेड) द्वारा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दाल की खरीदारी की जाएगी।

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दलहनी फसलों का रकबा बढ़ाना लक्ष्य -

छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने राज्य में दलहन फसलों का रकबा बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कृषि विभाग को किसानों को दलहन की पैदावार करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों को दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने हेतु दाल को एमएसपी के दायरे में लाने की सरकारी मंशा की जानकारी दी।

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मीडिया को उन्होंने बताया कि, 2022-23 के खरीफ फसल प्लान के अनुसार दलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है। उन्होेंने दलहनी फसलों के रकबे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी होने की जानकारी दी।

उत्पादन का लक्ष्य बढ़ा -

राज्य सरकार ने इस साल प्रदेश में दो लाख टन से अधिक (232,000) दाल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य पिछले खरीफ सीजन के संशोधित अनुमान से लगभग 67.51 फीसदी अधिक है।

पिछली खरीद के आंकड़े -

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने खरीफ सीजन 2021-22 में राज्य के दलहन उत्पादक किसानों से 139,040 टन दाल की खरीद की थी। पिछले साल के 501 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस बार 520 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दाल उत्पादन का लक्ष्य प्रदेश में रखा गया है।

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अहम होंगी ये तारीख -

प्रवक्ता सूत्र आधारित मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने इस साल एमएसपी पर दाल की खरीद के लिए सभी संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, मार्कफेड रीजनल ऑफिस और मंडी बोर्ड को विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं। किसानों के लिए एमएसपी पर उड़द, मूंग और अरहर बेचने की तारीख जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक किसान 17 अक्टूबर 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2022 तक उड़द और मूंग की उपज एमएसपी पर बेच पाएंगे। अरहर की खरीद 13 मार्च 2023 से लेकर 12 मई 2023 तक की जाएगी।
दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

विकास के लिए रायपुर में आज से जुटेंगे, देश भर के सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक

रायपुर। छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है, जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में दलहनी फसलों पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हेतु तीन
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं - मुलार्प फसलें (मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा, मटर), चना एवं अरहर संचालित की जा रहीं है जिसके तहत नवीन उन्नत किस्मों के विकास, उत्पादन तकनीक एवं कृषकों के खतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है, जिनमें मूंग की 2, उड़द की 1, अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं।


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छत्तीसगढ़ राज्य गठन के उपरान्त पिछले 20 वर्षों में प्रदेश में दलहनी फसलों के रकबे में 26 प्रतिशत, उत्पादन में 53.6 प्रतिशत तथा उत्पादकता में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद प्रदेश में दलहनी फसलों के विस्तार एवं विकास की असीम संभावनाएं हैं। इसी के तहत देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने, देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक, 17 एवं 18 अगस्त को कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में जुटेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से यहां दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का आयोजन किया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागृह में आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे करेंगे। शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ. बंसा सिंह तथा भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम भी उपस्थित रहेंगे। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल करेंगे। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास एवं अनुसंधान पर विचार-मंथन किया जाएगा।


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भारत आज मांग से ज्यादा कर रहा अनाज का उत्पादन

उल्लेखनीय है कि भारत में हरित क्रांति अभियान के उपरान्त देश ने अनाज उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है और आज हम मांग से ज्यादा अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन, आज भी हमारा देश दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सका है और इन फसलों का विदेशों से बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता हैै। वर्ष 2021-22 में भारत ने लगभग 27 लाख मीट्रिक टन दलहनी फसलों का आयात किया है। देश को दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लगातार प्रयास किये जा रहें हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों को दलहनी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वैसे तो भारत विश्व का प्रमुख दलहन उत्पादक देश है और देश के 37 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में दलहनी फसलों की खेती की जाती है। विश्व के कुल दलहन उत्पादन का एक चौथाई उत्पादन भारत में होता है, लेकिन खपत अधिक होने के कारण प्रतिवर्ष लाखों टन दलहनी फसलों का आयात करना पड़ता है।

यह समन्वयक करेंगे चर्चा

इस दो दिवसीय कार्यशाला में इन संभावनाओं को तलाशने तथा उन्हें मूर्त रूप देने का कार्य किया जाएगा। कार्यशाला में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना चना के परियोजना समन्वयक डॉ. जी.पी. दीक्षित, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना मुलार्प के परियोजना समन्वयक डॉ. आई.पी. सिंह, सहित देश में संचालित 60 अनुसंधान केन्द्रों के कृषि वैज्ञानिक शामिल होंगे।
धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे

धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे

वर्तमान में खरीफ फसल की बुआई हो चुकी है और फसल लहलाने भी लगी है। ऐसे में किसान अब फसल को सहेजने में लगे हुए हैं। किसान उन्हें कीट और अन्य बीमारियों से बचाने के लिये कई जतन कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) ने किसानों के लिए मौसम आधारित कृषि सलाह जारी की है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की मौसम आधारित कृषि सलाह

वर्षा के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को सलाह है की किसी प्रकार का छिड़काव ना करें और खड़ी फसलों व सब्जी नर्सरियों में उचित प्रबंधन रखे।

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दलहनी फसलों व सब्जी नर्सरियों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

धान की फसल में यदि पौधों का रंग पीला पड़ रहा हो और पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली और नीचे की हरी हो, तो इसके लिए जिंक सल्फेट (हेप्टा हाइडेट्र 21 प्रतिशत) 6 किग्रा/हैक्टेयर की दर से 300 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इस मौसम में धान की वृद्धि होती इसलिए फसल में कीटों की निगरानी करें। तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फिरोमोन प्रपंच -3-4 /एकड़ लगाए।
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इस मौसम में किसान गाजर की (उन्नत किस्म - पूसा वृष्टि) बुवाई मेड़ों पर कर सकते हैं। बीज दर 0-6.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान - 2.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें और खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है,

वे मौसम को देखते हुए रोपाई मेड़ों पर (ऊथली क्यारियों) पर करें और जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें।

इस मौसम में किसान ग्वार (पूसा नव बहार, दुर्गा बहार), मूली (पूसा चेतकी), लोबिया (पूसा कोमल), भिंडी (पूसा ए-4), सेम (पूसा सेम 2, पूसा सेम 3), पालक (पूसा भारती), चौलाई (पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण) आदि फसलों की बुवाई के लिए खेत तैयार हो तो बुवाई ऊंची मेंड़ों पर कर सकते हैं। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। किसान वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई इस समय कर सकते हैं। जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। इस मौसम में किसान स्वीट कोर्न (माधुरी, विन ऑरेंज) और बेबी कोर्न (एच एम-4) की बुवाई कर सकते हैं।
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जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। कद्दूवर्गीय और दूसरी सब्जियों में मधुमक्खियों का बडा योगदान है क्योंकि, वे परागण में सहायता करती है इसलिए जितना संभव हो मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें। कीड़ों और बीमारियों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाईयों का प्रयोग करें। किसान प्रकाश प्रपंश (Light Trap) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बरतन में पानी और थोडा कीटनाशक दवाई मिलाकर एक बल्ब जलाकर रात में खेत के बीच में रखे दें। प्रकाश से कीट आकर्षित होकर उसी घोल पर गिरकर मर जाएंगे। इस प्रपंश से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों मर जाते हैं। गेंदा के फूलों की (पूसा नारंगी) पौध छायादार जगह पर तैयार करें और जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। फलों (आम, नीबू और अमरुद) के नऐ बाग लगाने के लिए अच्छी गुणवत्ता के पौधों का प्रबन्ध करके इनकी रोपाई जल्द करें।